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» Garhwali%20poem
Kanu Badlya Jamaanu

कतगा भल्लु अर् प्यारु हमरु बचपन छाई
प्लास्टिका का न, माटा का खिलौंणा छाई

मोबैल, टीवी, वीडियो-गेम कख छै वेबगत
कंचा बटन या रीठों कि गुच्छी खेलदा छाई

छोरी नि जंणदि छै यु फेसबुक न व्हट्सएप
सैर्र्या दिन इच्चि-दुचि अर् बट्टी खेलदी छाई

नि जँणदि छाई नारी तब क्वी फैशन-फूशन
अद्धा दिन त लीखा-जुंवा मनमा कटेंदु छाई

नैं लारा त आंदा छाई सालमा बस एकी बार
फिर सर्र्या साल थ्यगलोंमा हि चलांदा छाई

चौंसंणि डांडि-कांठि गुंजदि छै ग्वेर-घसर्योंल
मुरलिकि भौंण सूंणि कि यु प्राण खुदेंदु छाई

हर साल मैँना बैसाख मा कौथीग उरेंदा छाई
माँ-बेटी अर् दगड्या नमान कन भेटेंन्दा छाई

बडु प्यार-प्रेम छै गौं का दाना-संयणों मा भि
सब एक चौक मा बैठिकि तंबखु खांदा छाई

ब्यो बरात्युंमा भि कन भलि रस्याँण रैंदि छाई
स्वाला-अरसा पकै कि डाळि कु रिवाज़ छाई

कनु बदल्या जमनु सर्र अर् कन लग्गी कांडा
अब कुछ त एडवांस च पर मनख्यात नि राई

Submitted By: Shiv Charan on 19 -Sep-2017 | View: 934
 
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